हर शाम बनता सँवरता है मौसम,
शायद अंतहीन इंतजार करता है मौसम।
किसी को पानी की तमन्ना किसी को भीगने का गम,
हर किसी को कहाँ खुश करता है मौसम।
सदा साथ रह कर भी वो अजनबी सा है,
मै जो गमजदा हूँ तो क्यों खुश है मौसम।
संभल संभलकर कदम रखती वो आई थी,
उस रोज भी तो खूब बरसा था मौसम।
शायद वो इस बार चले आए इस ओर,
इसी तमन्ना में सड़को पर बिताए कई मौसम।
किसी की नजरों से भीगा हूँ रूह तक,
अब क्या भिगोएगा यह बारिश का मौसम।
कच्ची उम्र और टूटी-फूटी भावनाएँ इनसे ही बनी हैं कुछ अधपकी सी कविताएँ जो उन दिनों के तमाम गडबडझाले के साथ प्रेम, प्यार का परिचय है। आज इनमें दम नहीं लगता पर लिख रहा हूँ बिना सुधारे....हमने भी सुधर कर क्या पा लिया...है।
8 comments:
ji bahut badhiya....
kunwar ji,
bahut khub
ye sham bahut yad aati he bahut suhati he mujhe
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बेईमान मौसम की अच्छी खिंचाई की प्रशांत भाई। खुदा खैर करें, और ये मौसम तुम पर भी मेहरबान हो।
बेईमान मौसम की अच्छी खिंचाई की प्रशांत भाई। खुदा खैर करें, और ये मौसम तुम पर भी मेहरबान हो।
अब भी मिलतें हैं हमसे यूँ फूल चमेली के
जैसे इनसे अपना कोई रिश्ता लगता है...
अप्रैल के बाद से क्या कोई लफ्ज़ बन कर याद नहीं आया, गोगी ?
जज्बे जब सालते हैं तो क्या समझाते हो उन्हें..? हिम्मत रखने को कहते हो क्या
सचमुच वह, तुम्हारी प्रेरणा ....ही तुम्हारी कविताओं के धड़कन है...अपडेट करो ब्लॉग
blog update kro dear! - khushi
very nicee
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