Friday, April 9, 2010

तुम जो अब `आप` हों


तुमः 1

तुम क्यों चले आते हो सच में,
तुम स्वप्न में ही अच्छे लगते हो,
कम से कम मेरा कहना तो मानते हो।


तुमः २

तुम्हे भूल जाना दिल पर पत्थर रखने जैसा था,
पर आज इस भरी दुपहरी सी
जिंदगी में उसी पत्थर के नीचे,
थोड़ी सी नमी बची है।
मैं अक्सर वहाँ थोड़ा जी लेता हूँ।

तुमः ३

यह सही है कि मैने दिल तोड़ा
तुम्हे तन्हा किया,
हर वो बात जो तुम्हे पसंद थी वो कहना छोड़ा
पर यह भी तो सच है ना कि जब हममें प्यार था,
तुम्हे उतना प्यार नहीं था जितना मुझे था।

5 comments:

दिलीप said...

pyaar me khuddari kya baat hai...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

प्रशांत शर्मा said...

thnx dilip g...

Anonymous said...

आपके पत्‍थर की नर्मी ने से हमें भी कुछ शीतलता मिल गई।
धर्मेन्‍द्र चौहान
dharmendrabchouhan.blogspot.com

मिष्वी said...

वो क्या कहते थे उनकी बातों को हम समझ न पाए
कारवां गुजर गया तब मुसाफिर नजर आए
एक मुद्दत से हमें पुकारा करते थे वो
जब हम पलटे, तब तलक वो ठहर न पाए

प्रशांत शर्मा said...

हम वक्त, इंसान को कब समझ पाए यह बीत जाने पर भी गुजरते कहाँ हैं...पर इसी अधूरेपन का अपना लुत्फ है। धन्यवाद इतनी खूबसूरत पक्तिंयों के लिए....

प्रतिष्ठा

हम अकेले नहीं थे। हमारे साथ एक साईकिल थी जिसे हाथ में लिए हम कॉलेज से निकल रहे थे। और हवा को वो हिस्सा भी जो उसके दुप्पटे को मेरे हाथ पर ला ...