Thursday, July 30, 2009

आज फिर दिल को ...


इस समय कैसे प्रतिक्रिया दूँ, मैं क्या चाहता हूँ, मैं क्यों उदास हूँ, इसलिए की वे अब फिर साथ रहेंगे या इसलिए की उसे नई तकलीफें होगी, उसे अपने घरवालों ने एक तरह से निकाल दिया, उसे सामान भी नहीं दे रहे हैं। उसने मुझसे घर खोजने को कहा, मैने प्रयास किया, लेकिन मेरे बताने से पूर्व ही उन्हें मिल गया। एक गम तो शायद यह है कि मैं सहायता नहीं कर पाया, या उसने घर मिलते ही मुझे खबर नहीं दी। यह कोई नई बात नहीं है। पर लगता है मेरी जगह आने वाले दिनों में कम होती जाएगी। मैं चाहता हूँ वो एक बार टूट कर आए और मुझे मिल जाए। जितना में तड़पता हूँ, उसे भी हो।लेकिन जमाने भर की परेशानियाँ उठाते- उठाते, उसमें मैं जाने कहाँ गुम हो चुका हूँ। कोई गालियाँ देकर छोड़ दे तो गम नहीं, पर इस तरह खत्म होना तो बड़ा त्रासदायक है। मुझे जल्द ही यहाँ से जाना है, लेकिन क्या उसे मैं भूल सकता हूँ..नहीं। ऐसे में उसे और तकलीफ भी नहीं देना चाहता। पर मेरे अंदर कुछ है, जो बार-बार सोचता है कि वो इन सब से निकलकर मेरे पास आए। आखिर क्यों इतने तार्किक कारण होने के बावजूद मैं यह सब चाहता हूँ। मुझे इस बात का भरोसा है कि कुछ टूटा नहीं है। वहाँ कुछ तो शेष है, जो उसकी भाषा, उसके लहजे और उसके स्वर में सुनाई देता है, वो मंदिर की घंटियों जैसी शांति देती है। मुझसे वो काफी देऱ तक अपनी भड़ास उड़ेलती रहती है। मैं सुनता रहता हूँ, पर मैं चाहता हूँ कि कभी वो यह भी कहे कि मुझे भी वह याद करती है।
कई बार लगता है, उसकी मजबूरियाँ उसकी भावनाओं को शब्द नहीं देने देती। इतनी गहराई से जानने के कारण मैं एकदम उसे छोड़ नहीं सकता। चाहता हूँ बाहर जाकर उसे भूल जाउँ। या अपने पर काबू रखते हुए उससे व्यवहार करूँ, पर यह तभी संभव है, जब मेरे पास कोई हो। उतना ही शक्तिशाली, उतना ही लुभावना। आने वाले समय में सब होगा, लेकिन आज मैं क्या करूँ। मैने अपनी भावनाओं के प्रगटीकरण को स्थगित करना ही उचित समझा है। बस चुपचाप रहूँ, देखूँ, सहूँ। मैं खुश हूँ कि उसे कहीं तो ठौर मिला, पर चिंतित हूँ, कोई कितनी समस्याओं से जूझेगा। उसके जीवन में स्थिरता कब आएगी। मैं बस चाहता हूँ वो ठीक रहे, शायद इसीलिए मैं बार-बार उसके हाल जानता हूँ और फिर आसक्ति शुरू होती है। मुझे यह सब अच्छा लगता है आखिरकार आज केवल उसे देखकर, बातकरके ही तो मुझे सकून मिलता है। यह मेरी मजबूरी है, आसक्ति है या प्यार मैं नहीं जानता, लेकिन मेरी खुशी और गम पर उसका इख्तियार है, इसे मानने में एक फीसद भी संदेह नहीं है। तो फिर रहूँ मैं यू हीं भीगा-भीगा सा, कतरा-कतरा जलता सा....

प्रतिष्ठा

हम अकेले नहीं थे। हमारे साथ एक साईकिल थी जिसे हाथ में लिए हम कॉलेज से निकल रहे थे। और हवा को वो हिस्सा भी जो उसके दुप्पटे को मेरे हाथ पर ला ...