Monday, August 24, 2009

ख्वाबों का इंतजार

इंतजार यदि उसका होता तो उसके आने पर खत्म हो जाता। लेकिन यह इंतजार तो उसमें अपने लिए प्यार आने का है। कितना त्रासद है..वो सामने हो लेकिन वैसा नहीं जैसा हम चाहते हैं, वो मिलता रहे लेकिन मुलाकात न हो। तमाम तर्कों के बावजूद दिल में एक बात आती है.. क्यों नहीं मिल जाए वो वैसे जैसे पहले मिलती थी या ख्वाबों में मिलती है। नहीं तो यह सिलसिला ठीक से खत्म हो जाए..कहीं तो पहुँचा..ऐ समय मुझे ऐसे नहीं रहना तेरे साथ। हम कई बार सब कुछ जानते हुए ऐसी कल्पनाएँ करते हैं, जो सिर्फ हम ही जानते है कि संभव नहीं है। क्या है आखिर यह? क्या दिल में ख्वाहिश नहीं होती कि किसी दिन वो शख्स, जो हमें बेहद प्यारा है, सारे तर्कों की दिवार गिरा हमसे मिल जाए, एक बात जो हमारे जहन में सदियों से है, वही बात वो हमसे कह दे...कोई आए हमें इन नैतिक, सामाजिक, संस्कारों के अदृश्य पिंजरों से निकालकर दूर आसमान में कहीं ले जाकर कहे कि कर ले तेरे सारे स्वप्न पूरे .......। यह कल्पनाएँ बलवती होती जाती है क्योंकि अक्सर लगता है कि अब बस खत्म हो रहा है इंतजार। जिसके लिए यह सब संजोया था वो अक्सर ही तो मिलता है। कभी हकीकत में कभी यूँ ही जहन में.. हर बार उससे हम कहते है, पर वो बहाने बनाते हुए कहता है कि अभी यह संभव नहीं है..और हम फिर इंतजार करते है, उसमें वही भाव आने को जो हमें अजीज है। हमें यह इंतजार अच्छा भी तो लगता है, भले ही सदियों तक केवल इंतजार रहे, क्योंकि हमारे जीने का बहाना भी तो यही है। और इन्ही अपूर्ण ख्वाबों का नाम शायद जिंदगी हो.

2 comments:

monika said...

bahut acha likha hai.vaise intjar ka fal mitha hota hai janab

मिष्वी said...

ए शायर तू किसकी मोहब्बत में दीवाना हुआ जा रहा है
लगता तो ये है कि मेहबूब तेरा निरा बहरा है

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