
Monday, August 24, 2009
ख्वाबों का इंतजार

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इन दिनों जब कुछ नहीं हैं!
मुझसे कुछ भी नहीं हो पाया जैसे सब कुछ होते हुए भी कुछ हाथ नहीं आया। बड़ी गहराइयों से देखे तो बड़ा ज्ञान रहा, दोस्त थे, शहर था, सब कुछ ठीक ...
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`और क्या..` फिर मौन.. शब्द गले में अटके। उन भावों को गला स्वर भी नहीं दे पाता। चुप में सबकुछ था, जो शब्द में कहीं नहीं था। फिर जैसे शब्दों ...
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तुमः 1 तुम क्यों चले आते हो सच में, तुम स्वप्न में ही अच्छे लगते हो, कम से कम मेरा कहना तो मानते हो। तुमः २ तुम्हे भूल जाना दिल पर पत्थर रखन...
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हर शाम बनता सँवरता है मौसम, शायद अंतहीन इंतजार करता है मौसम। किसी को पानी की तमन्ना किसी को भीगने का गम, हर किसी को कहाँ खुश करता है ...
2 comments:
bahut acha likha hai.vaise intjar ka fal mitha hota hai janab
ए शायर तू किसकी मोहब्बत में दीवाना हुआ जा रहा है
लगता तो ये है कि मेहबूब तेरा निरा बहरा है
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