Tuesday, April 20, 2010


मैं फिर खड़ा हूँ, यह सोच कर,

जैसा मैं तुम्हारे लिए सोचता था,

कि आएगी तुम्हे मेरी याद

और तुम्हारी याद फिर दौड़ आएगी।

लेकिन,

नहीं होता

मैं ही करता जतन तुम्हें याद करने का

तुम्हारी याद नहीं आती, तुम्हारी तरह

कितनी समानता हैं तुममें और तुम्हारी याद में

और मैं
हमेशा ही इंतजार में रहा चाहे कल्पना हो
या
हकीकत..

2 comments:

Udan Tashtari said...

अब तो याद भी उनकी आने से कतराने लगी है..
हाय!! किस किस तरह से वो सताने लगी है..

khushi said...

kaash! tum jaan pate, ki usne tumhe
kitnaa yaad kiya..un aansuo se kahi aage, jinka ab uske paas hisaab hi nahi hai....jo din raat shayad ab bhi bahte hhi rahte ho.....

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