Tuesday, April 20, 2010
मैं फिर खड़ा हूँ, यह सोच कर,
जैसा मैं तुम्हारे लिए सोचता था,
कि आएगी तुम्हे मेरी याद
और तुम्हारी याद फिर दौड़ आएगी।
लेकिन,
नहीं होता
मैं ही करता जतन तुम्हें याद करने का
तुम्हारी याद नहीं आती, तुम्हारी तरह
कितनी समानता हैं तुममें और तुम्हारी याद में
और मैं
हमेशा ही इंतजार में रहा चाहे कल्पना हो
या
हकीकत..
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प्रतिष्ठा
हम अकेले नहीं थे। हमारे साथ एक साईकिल थी जिसे हाथ में लिए हम कॉलेज से निकल रहे थे। और हवा को वो हिस्सा भी जो उसके दुप्पटे को मेरे हाथ पर ला ...
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हम अकेले नहीं थे। हमारे साथ एक साईकिल थी जिसे हाथ में लिए हम कॉलेज से निकल रहे थे। और हवा को वो हिस्सा भी जो उसके दुप्पटे को मेरे हाथ पर ला ...
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हर शाम बनता सँवरता है मौसम, शायद अंतहीन इंतजार करता है मौसम। किसी को पानी की तमन्ना किसी को भीगने का गम, हर किसी को कहाँ खुश करता है ...
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इंतजार यदि उसका होता तो उसके आने पर खत्म हो जाता। लेकिन यह इंतजार तो उसमें अपने लिए प्यार आने का है। कितना त्रासद है..वो सामने हो लेकिन वैस...
2 comments:
अब तो याद भी उनकी आने से कतराने लगी है..
हाय!! किस किस तरह से वो सताने लगी है..
kaash! tum jaan pate, ki usne tumhe
kitnaa yaad kiya..un aansuo se kahi aage, jinka ab uske paas hisaab hi nahi hai....jo din raat shayad ab bhi bahte hhi rahte ho.....
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