Sunday, April 20, 2008

जियो की यह भी मज़बूरी हैं

मुझे मालूम हैं उसे फोन करने पर क्या बात होगी /मैं बड़ी गहराई से समझाना चाहूँगा और वह अपनी मजबूरियां बता कर मेरी बातों को हवां मैं उड़ा देगीं /यह मजबूरियां भी अजीब हैं /जो हमें वो नहीं करने देती जो हम चाहतें हैं /इससे ख़ुद को परेशानियाँ शायद कम हो लेकि दूसरो को ज्यादा होती हैं /आख़िर हमें यह सकूनरहता हैं की हमने वो किया जो सही था पर जिस पर बीतती हैं उसे क्या मिलता हैं /अक्सर प्यार नही मरता उसे दोनों मरने भी नही देते पर परिस्थितियां बदल जातीं हैं/ फिर भी मेरा मानना हैं की थोड़ा बहुत तो ख्याल रखा जाना चाहिए आखिर सामने वाले की मज़बूरी हैं वो आपसे प्यार करता रहा हैं /आप भी उसे प्यार करने से मना नही करते और उसे मजबूरियां बता कर समझाते हैं/ चलों समाज हैं,उसके नियम हैं, सब हैं पर यह जब भी होतें हैं जब रिश्तों की शुरुआत होती हैं /तब सब सही होता हैं पर जैसे कोई तीसराआता सारें नियम कानून सामने आने lagte हैं / यह कहाँ जा सकता हैं की जब प्यार हैं तो शादी करो पर होता यह हैं की मजबूरियां ऐसा करने नही देती फिर मजबूरियां मिलने नही देती और मज़बूरी होती हैं की छोड़ने नही देती हैं वो इसलिये नही छोडती की तुम सबसे करीब हो और तुम्हे भी वोही सबसे अजीज लगता हैं / कुल मिला कर मजबूरियां ऐसा रंग जमाती हैं की कई लोग परेशांहो जातें हैं /क्या कोई रास्ता हो सकता है क्या समाज परिवार के नाम पर बलि चडें प्रेम को कभी मानेगा क्या लड़की के शादी होने के बाद पुराने रिश्तें खत्म मान लिए जायें क्या आदमी की शादी होने के बाद वह मजबूर हैं हर उस लड़की को भूल जाने के लिए जो उसे अच्छी लगती थी /अगर हाँ तो पहले शादी की गुंजाईश देखों फिर प्यार करों लेकिन यह तो प्यार के मूल से ही उल्टा हैं वहाँ सब कुछ पल भर मैं होता हैं/मुझे लगता हैं अपने समाज ,परिवार के लिए कुर्बानी देने वालों के साथ ही यह समाज सबसे ज्यादा निष्ठुर होता हैं /और उसे भी निष्ठुर बना देता हैं जिसके मन आपके लिया थोडी जगह होती हैं/ तो मैं क्यो फोन करूँ एक ऐसे व्यक्ति को अपने प्यार को छुपायेंगा मुझ से जबकि सिर्फ़ मुझे ही प्यार वह बता सकता हैं/ क्यो मैं उसकी परीक्षा लू / उसे छोड़ दू /पर कोई बताएं वोही हैं जिसके भरोसे मैं जी सकता हू../मुझे शरीर नही चाहिए /उससे बात भी नही करना हैं मिलना भी नही केवल यह सुनना हैं की वहां अभी प्रेम बचा हैं मेरे लिए थोड़ा सा ही सहीं अब इतनी सी बात सविकारने मैं कौन सी मज्बुरिन हैं /पर यह मन के दंड हैं इसमें कोई नही जीतता मेरी क्या बिसात भगवन भी तो मजबूर हैं आख़िर मुझे खुशी देना होती तो यहाँ मेरे साथ होती .....तो फिर जियो जितने सांसे लिखी उतनी भरो यह भी तो मज़बूरी हैं,,/

4 comments:

monika said...

sirf aahsaas hai ye ruh se mahsus karo

मिष्वी said...

मजबूर प्यार को समझते हो तो फिर उससे उम्मीद क्यों करते हो. वो कभी नहीं कह पाएगी चाहे आप सिर्फ इतना सुनने के बाद छोड़ देने का वादा क्यों न करो क्योंकि शायद यही तो वह नहीं चाहती कि आप उसे छोड़ दो। मजबूरी में मोहब्बत ही तो मजबूर का हथियार होती है। उपर से वो कितना ही कमजोर दिखाई देता रहे पर अंदर से उसमें बहुत उर्जा होती है और वो उर्जा इसी प्यार की होती है कि हां कोई तो है जो उसे दीवानों की तरह चाहता है फिर कैसे वो एक बार कहकर किस्सा खतम कर दे। स्वार्थी मोहब्बत तो इस एक बात को बुढापे का सहारा बनाकर जी लेगी।

मिष्वी said...

कोई आपसे इतना प्यार करता है इस अहसास में जीने का अपना ही मजा है, मजा है इस बात में कि आप उसे जरा सा याद करोगे और वो दौड़ा चला आएगा, मजा है कि आपको खरोंच भी आएगी तो वो घबराकर मरहम लगाएगा, मजा है कि एसे ही मजाक में भी आप कराह दोगे तो उसका प्यार भरा स्पर्श आपको अंदर तक छू जाएगा, मजा इसमें भी है आप जब भी बन संवर कर आओ वो आपमें अपनी मोहब्बत खोजता रहेगा और आप उसकी आखों से टपकती मोहब्बत को हर अदा और हर लफ्ज में महसूस कर लेंगे।
अगर अभिव्यक्ति के बिना इतना मजा है प्यार में तो भला कोई क्यों अभिव्यक्ति करने लगा।


लड़कियों की इस अदा पर भी गौर फरमाइएगा प्रशांत जी

मिष्वी said...

कोई आपसे इतना प्यार करता है इस अहसास में जीने का अपना ही मजा है, मजा है इस बात में कि आप उसे जरा सा याद करोगे और वो दौड़ा चला आएगा, मजा है कि आपको खरोंच भी आएगी तो वो घबराकर मरहम लगाएगा, मजा है कि एसे ही मजाक में भी आप कराह दोगे तो उसका प्यार भरा स्पर्श आपको अंदर तक छू जाएगा, मजा इसमें भी है वो जब भी बन संवर कर आए आप उसमें अपनी मोहब्बत खोजते रहेगें और वो आपकीआखों से टपकती मोहब्बत को हर अदा और हर लफ्ज में महसूस कर लेंगे।
अगर अभिव्यक्ति के बिना इतना मजा है प्यार में तो भला कोई क्यों अभिव्यक्ति करने लगा।

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