Thursday, March 6, 2025

तुम्हे क्या लगता है!


कई सालों के बाद फ़ोन लगाया,


`हलो`...


तो उसने कहा... `बोलो...`


मैने कहा `मैं बोल रहा हूँ `!

`हाँ पता है...और बताओं...`

`तुम्हे अजीब नहीं लगा इतने दिनों बाद फ़ोन आया`...लड़खड़ाते हुए शब्दों से मैने कह दिया।

`नहीं...`

फिर खामोशी । खामोशी में कुछ सुनने के लिए मोबाइल कान पर ज़ोर सटा दिया, सोचा मन की थाह पा जाउं। पर दोनों और से खामोशी ही रही।

फिर मैने कहा-`चुपचाप रहती हो तो अच्छी लगती हो...`

`तुम भी...`

फिर चुप्पी.। सांसों की आवाज़ के सहारे दोनों कुछ कहते रहे, सुनते भी रहे, आंखों से लेकर मन तक सब भींग गए, गीलापन समेटते हुए मैने पूछ लिया।

`मेरी याद आती है, तुम्हे`!

और भी लंबी खामोशी...कई जवाब मेरे जहन मैं आते रहे, कुछ अच्छा भी नहीं लगा, क्यों पूछ लिया होगा मैने?

बड़ी देर बात उसने कहा...

`तुम्हे क्या लगता है...`

मैं क्या कहता..

और इस बार भी अनुतरीत रह गया सवाल...।

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तुम्हे क्या लगता है!

कई सालों के बाद फ़ोन लगाया, `हलो`... तो उसने कहा... `बोलो...` मैने कहा `मैं बोल रहा हूँ `! `हाँ पता है...और बताओं...` `तुम्हे अजीब नहीं लगा ...