हर शाम बनता सँवरता है मौसम,
शायद अंतहीन इंतजार करता है मौसम।
किसी को पानी की तमन्ना किसी को भीगने का गम,
हर किसी को कहाँ खुश करता है मौसम।
सदा साथ रह कर भी वो अजनबी सा है,
मै जो गमजदा हूँ तो क्यों खुश है मौसम।
संभल संभलकर कदम रखती वो आई थी,
उस रोज भी तो खूब बरसा था मौसम।
शायद वो इस बार चले आए इस ओर,
इसी तमन्ना में सड़को पर बिताए कई मौसम।
किसी की नजरों से भीगा हूँ रूह तक,
अब क्या भिगोएगा यह बारिश का मौसम।
कच्ची उम्र और टूटी-फूटी भावनाएँ इनसे ही बनी हैं कुछ अधपकी सी कविताएँ जो उन दिनों के तमाम गडबडझाले के साथ प्रेम, प्यार का परिचय है। आज इनमें दम नहीं लगता पर लिख रहा हूँ बिना सुधारे....हमने भी सुधर कर क्या पा लिया...है।